वक़्त के कुछ मंज़र

 

        वक़्त के कुछ मंज़र पर मुझे कई शख्सियत मिली। कभी कोई गुमराह मुसाफिर, रास्ता पूछते हुए अपनी जानिब-ए-मंज़िल बता जाता था। उसके गुज़र जाने के बाद जहन में सिर्फ एक ही बात गूंजती रहती, वो ठीक से पोहच तो गया होगा ? या फिर कही रास्ता भटक गया होगा ? शायद मुझे उसके साथ जाना चाहिए था ! लेकिन ऐसे कई लोग मिलते है पामाल रास्तो पर। में हर किसी का हमसफर तो नही बन सकता। मेरा काम सिर्फ उन्हें रास्ता दिखाना है। उन्हें अपना सफर खुद ही तय करना होगा। फिर भी पल भर की निसबत बे-चैन कर के जाती है ।
        वक्त के कुछ मंज़र पर मुझे कई शख्सियत मिली। कभी किसी मैखाने में, शराब के बहाने अनजान लोग से मुलाक़ात हुई। नशे में उन्होंने अपनी कहानियां मुझसे बया कर दी। उनकी दास्तान-ए-इश्क़, यारो की बगावत, ज़िंदगी ने उनपे बरसाए हुए कहर, कुछ ऐसे लम्हे जो उनके दिल के करीब थे, लेकिन वो किसी को बयां नही कर पाए। शायद उन्हें ऐसा लगा होगा, उनके साथ कोई और भी हो जो इनका गवाह हो, जो इन्हें संभालकर रखे, याद रखे।
लेकिन कई बार कुछ यूं हुआ, नशे में होने की वहज से कहानी आधे में छोड़ कर वो बेहोश हो गए, तो कुछ हिम्मत नही जुटा पाए आगे बया करने की।
         हर बार में इसी खयाल में डूबा रहा, उन कहानियों का आधा हिस्सा क्या होगा। लेकिन में कभी भी उन्हें उसके मुकम्मल अंजाम तक पोहचा नही पाया। में उन्हें अपने हिसाब से बदल नही सकता। मेरा काम बस सुनना था । वो उन्हें ही पूरी करनी पड़ेगी।
        बस वक़्त के कुछ मंज़र पर वो मुझसे हो के गुज़री थी। जहा तक में उनका गवाह हु, वही तक लिखने की मुझे इजाजत है।


Written by
Suraj_2310

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