तवायफ

कोई आए और हमे जीने के सलीके सिखाए
कई अरसे से बस एक जिस्म को जिंदा रखे हुए है
रोज उठके इसे सजाके, सहलाक़े
रख देते है दुनिया के बाजार में
बिकने के लिए
फिर कोई आकर
इसे परखता है
दाम लगता है
और खरीद लेता है
कुछ वक्त के लिए
और चला जाता है
फिर यही सिलसिला दोहराते हुए
जिए जाते है इसी आस में
कोई आए और हमे जीने के सलीके सिखाए
कई अरसे से बस एक जिस्म को जिंदा रखे हुए है
भूल गए थे कि
सीने में एक दिल भी है
जज्बात का तो पता नही
लेकिन कभी कभार
धड़कने जरूर सुनाई देती है इसकी
पहले होती थी इसकी नवाजिशें
जताता था इसपे हक हरकोई आते-जाते
लेकिन जब ये पत्थर में तपदिल हो गया
इसका वजूद ही मिट गया
फिर भी बाकी एक आस है
कोई आए और हमे जीने के सलीके सिखाए
कई अरसे से बस एक जिस्म को जिंदा रखे हुए है
ये आपकी हवस भरी आँखें
जब हम देखती है
तो याद आते है वो शायर
जो इसे कभी चाँद, कभी खुदाके
बराबर मानते थे
अगर वो कही मिल जाए
तो उन्हें हमारी गली का पता जरूर बता देना
जरा वो भी तो देखे
ये हैवानियत ये दरिंदगी
इंसान के भेस में
जानवर कैसे छुपे होते है
हम तो बेफिजूल ही बदनाम
इसमे हमारी खता क्या है
कोई आए और हमे जीने के सलीके सिखाए
कई अरसे से बस एक जिस्म को जिंदा रखे हुए है

Written by
Suraj_2310

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