कैद
ये कैद है
जो मैंने अपने लिए बनाई है,
तेरी यादें
पहरेदार है इसकी।
लगता है अब तो बाकी उम्र
यही बसर होगी,
ना मुझे आज़ाद होने की ख्वाहिश है
ना ही मैं भागने की कोशिश करूंगा।
यहाँ तुमसे बिछड़ने का डर नहीं है
और ना तुमसे मिलने की आस
पता नहीं ये कैसा सौदा किया है
मैंने अपनी ज़िंदगी के साथ।
ख़यालों की अदालत में
दिल और दिमाग के बीच
कई महीनों तक मुक़दमा चला,
दिल ने
हमने साथ गुज़ारे सारे लम्हों को
गवाही देने बुलाया।
और दिमाग ने सिर्फ
तुमसे बिछड़ने का एहसास
सबूत के तौर पर पेश किया,
दिमाग के सवालों से
सारे लम्हे बहोत जलील हुए,
उन्हें झूठा साबित किया गया।
एहसास के जवाबों के सामने
दिल की एक नहीं चली.
क्योंकि वो सच कह रहा था।
फैसला सुनाने से पहले
मुझसे पूछा गया
"मैं क्या चाहता हु ?"
मैं चुपचाप कटघरे में खड़ा रहा।
जब ये मुक़दमा शुरू हुआ,
मैं उसी वक़्त हार गया था।
सारे गवाह,सबूत
और मेरी ख़ामोशी को मद्देनज़र रखते हुए
सज़ा सुनाई गयी
और मैं यहाँ आ गया।
इस जगह का जिक्र
मैंने किसी से नहीं किया।
तुमसे बस एक दरख्वास्त है,
मेरी जमानत करने मत आना कभी।
ये कैद है
जो मैंने अपने लिए बनायीं है,
तेरी यादें
पहरेदार है इसकी।
Edited by
Sanath K
Written by
Suraj_2310
👍👍
ReplyDeleteVery nice suraj and santya...
ReplyDeleteThank you so much...
Deleteछान.
ReplyDeleteShukriyaa
DeleteI haven't experienced something like this but yeah if I feel it will be the same I guess but ya I don't wanna experience this ani aai ney khup Chan sangitlay.....asac lihat Raha..... .
ReplyDeleteThank you so much...
DeleteWriting!!👏👏
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