महताब
मेरे डायरी के सारे पन्नोपे
तेरी ही रहमत है
आके देख मेरी जान
सारि तेरी ही सल्तनत है
बंदा गुलाम है तेरा
सिर्फ तेरे हुक्म की देरी है
ना में कोई बड़ा शायर हू
ना मेरे मुशायरो के लोग दीवाने है
लेकिन जो पढले
वो तुझे याद करता जरूर है
माफ कर देना
थोड़ा गुस्ताख़ हु में
क्या करूँ, दिल तो मेरा ही है
लेकिन इसपे हुकूमत तेरी है
मेरी इनायत भी तू है
मेरी कयामत भी तू है
मेरे मेहबूब
मेरे इबादत की इब्तिदा भी तू है
ये साजिश-ए-कायनात है
जो हमे पास लाई है
अब चाहे तू ठुकरा मुझे
या पनाह दे दे
तेरी कुर्बत मैं ना सही
तेरी रुकसत में ही जी लूंगा में
क्या मुह दिखाऊंगा अपने खुदको
जो ज़िंदगी भर तुझे याद ना करु मैं
मेरी दुआ भी तू है
मेरी सजा भी तू है
ये सुकून-ए-दिल
मेरी खता का सिला भी तू है
इसके आगे चाहे
मेरा वजूद मिट जाए
सारी खुशी गम में तबदील हो जाए
गुनाह-ए-इश्क़ मैंने
एक बार ही किया
अब ज़िन्दगी चाहे
तेरी कैद-ए-आवारगी में निकल जाए
मेरी पेहचान भी तू है
मेरी खामोशी की जुबां भी तू है
ये जेहनशी
मेरे आसमान का महताब भी तू है
Written by
Suraj_2310
तेरी ही रहमत है
आके देख मेरी जान
सारि तेरी ही सल्तनत है
बंदा गुलाम है तेरा
सिर्फ तेरे हुक्म की देरी है
ना में कोई बड़ा शायर हू
ना मेरे मुशायरो के लोग दीवाने है
लेकिन जो पढले
वो तुझे याद करता जरूर है
माफ कर देना
थोड़ा गुस्ताख़ हु में
क्या करूँ, दिल तो मेरा ही है
लेकिन इसपे हुकूमत तेरी है
मेरी इनायत भी तू है
मेरी कयामत भी तू है
मेरे मेहबूब
मेरे इबादत की इब्तिदा भी तू है
ये साजिश-ए-कायनात है
जो हमे पास लाई है
अब चाहे तू ठुकरा मुझे
या पनाह दे दे
तेरी कुर्बत मैं ना सही
तेरी रुकसत में ही जी लूंगा में
क्या मुह दिखाऊंगा अपने खुदको
जो ज़िंदगी भर तुझे याद ना करु मैं
मेरी दुआ भी तू है
मेरी सजा भी तू है
ये सुकून-ए-दिल
मेरी खता का सिला भी तू है
इसके आगे चाहे
मेरा वजूद मिट जाए
सारी खुशी गम में तबदील हो जाए
गुनाह-ए-इश्क़ मैंने
एक बार ही किया
अब ज़िन्दगी चाहे
तेरी कैद-ए-आवारगी में निकल जाए
मेरी पेहचान भी तू है
मेरी खामोशी की जुबां भी तू है
ये जेहनशी
मेरे आसमान का महताब भी तू है
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Suraj_2310
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